प्रज्ञायोग व्यायाम का गृहिणियों के जीवन संतुष्टि स्तर पर प्रभाव
डिलेष्वरी1, डॉ. राघिका चंद्राकर2
1पी.एच.डी. शोधाथी, श्री रावतपुरा सरकार युनिवर्सिटी, रायपुर.
2सहायक प्राघ्यापक, श्री रावतपुरा सरकार युनिवर्सिटी, रायपुर.
*Corresponding Author E-mail:
ABSTRACT:
जीवन में संतुष्टि का होना अत्यंत आवश्यक है। संतुष्टि के बिना अच्छे जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती है। इससे जीवन में तरह तरह की समस्याएँ उत्पन्न होती है। जीवन संतुष्टि का अर्थ है- आत्म संतोष याजीवन में खुशहाली से लगाया जाता है। हर व्यक्ति सोचता है कि वह जो जीवन शैली अपनाए हुए है। उसमें उसे संतोष मिले या खुसी मिले। और यह तभी संभव है जब हमारा दिनचर्या अच्छा हो। अच्छे दिनचर्या का आरंभ योगाभ्यास के द्वारा होता है। योगाभ्यास में प्रज्ञायोग व्यायाम एक महत्वपूर्ण व्यायाम है। जिसका अभ्यास सभी आयु-वर्ग चाहे बच्चे हो,युवा हो महिला-पुरुष या वृद्धजन-सभी आसानी से कर सकते है। इसका अभ्यास गृहिणियाँ भी आसानी से कर सकते है। प्रज्ञायोग व्यायाम के अभ्यास से शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक आध्यात्मिक एवं बौद्धिक स्वास्थ्य भी उन्नत बनता है, जिससे सदैव शरीर स्वस्थ रहता है एवं मन में शांति, संतोष, उत्साह व उमंगे रहती हैं जिससे जीवन में संतुष्टि बनी रहती है।
KEYWORDS: प्रज्ञायोग व्यायाम, गृहिणियॉ, जीवन संतुष्टि.
प्रस्तावना &
प्रज्ञायोग व्यायाम,तपोनिष्ठ,युगऋषि पं. श्री राम शर्मा आचार्य जी द्वारा दिया गया है । यह विशेष प्रकार के सोलह आसनों का सम्मिलित समूह है। इस योग व्यायाम को सभी वर्ग अर्थात बच्चे, युवा महिला-पुरुष एवं वृध्दजन आसानी से कर सकते हैं। प्रज्ञायोग व्यायाम को स्वास प्रस्वास की गति के साथ करने से शरीर के अंदर की प्रत्येक नस नाड़ियों का शोधन होता है। साथ ही तंत्रिका तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे शरीर में स्फूर्ति रहता हैं एवं चेहरे में प्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है। (कामख्या कुमार, 2011 पृ. ३०.) प्रज्ञायोग व्यायाम के प्रत्येक आसन के साथ ही गायत्री मंत्र के अक्षरों को जोड़ देने से शरीर की स्थिरता के साथ मन की एकाग्रता एवं भावनात्मक पवित्रता का भी अभ्यास साथ ही साथ होता रहता है। जिससे गृहिणियों के शारीरिक स्वास्थ,मानसिक स्वास्थ्य,आध्यात्मिक स्वास्थ्य के साथ-साथ बौध्दिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार जब गृहिणियाँ सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ होती है एवं विचारों में सकारात्मकता होती है। तो उनके जीवन में संतुष्टि ही संतुष्टि होती है।
चरों का विवरण
ऽ स्वतंत्र चर-प्रज्ञायोग व्यायाम
ऽ आश्रित चर-जीवन संतुष्टि
प्रज्ञायोग व्यायाम
प्रज्ञायोग एक ऐसी विधा है जो दो शब्दों से मिलकर बनी है- प्रज्ञा $ योग। योग का साधारण अर्थ होता है जोड़ना, मिलना या एकाकार हो जाना। जैसे- दूध का पानी में मिलने पर एकाकार हो जाना है ।
प्रज्ञा अर्थात प्रखर बुद्धि।
अतः मनुष्य में विवेक के साथ संतुलन का सामंजस्य हो। स्पष्टतः प्रखर मेधा, विवेक के साथ इसमें संतुलन का मिलना एकाकार हो जाना प्रज्ञायोग कहलाता है। परम पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में विकसित इस प्रज्ञायोग व्यायाम की इस पद्धति में आसनों, उप आसनों, श्वास. प्रश्वास क्रम, मुद्राओं एवं प्राणायाम की क्रियाओं का सुंदर समन्वय हैं। प्रज्ञायोग व्यायाम श्रृंखला की प्रत्येक मुद्रा के साथ गायत्री मंत्र के अक्षरों को जोड़ देने से शरीर के व्यायाम के साथ-साथ मन की एकाग्रता एवं भावनात्मक पवित्रता का भी अभ्यास होता रहता हैं। (रावत, डॉ.अनुजा 2016 पृ. 175),
प्रज्ञायोग व्यायाम के सोलह आसनों की श्रृंखलाएँ निम्न है -
1 ताड़ासन (ॐ भूः)
2 पादहस्तासन (ॐ भुवः)
3 वज्रासन (ॐ स्वः)
4 उष्ट्रासन (तत्)
5 योगमुद्रा (सवितुः)
6 अर्द्धताड़ासन (वरेण्यं )
7 शशांकासन (भर्गो)
8 वे भुजंगासन ( देवस्य )
9 तिर्यक भुजंगासन बायें ( धीमहि)
10 तिर्यक गुजंगासन दायें (धियो)
11 शशांकासन (यो नः)
12 अर्धताड़ासन (प्रचोदयात्)
13 उत्कटासन (ॐ भूः)
14 पादहस्तासन (ॐ भुवः)
15 ताड़ासन (ॐ स्वः)
16 ॐ, बल की भावना करते हुए सावधान की स्थिति में आना।
17 (ब्रम्हवर्चस. पृ 13-19)
इस प्रकार इन सोलह मुद्राओं के योग से प्रज्ञा योग व्यायाम का एक चक्र पूरा होता है। प्रारंभिक अभ्यास में प्रत्येक आसान का अलग-अलग अभ्यास किया जाना चाहिए, तत्पश्चात् धीरे से अभ्यास बढ़ाते हुए प्रज्ञायोग व्यायाम का पूर्ण अभ्यास करना चाहिए। इसमें ष्वास प्रष्वास क्रम और मंत्रों के उच्चारण पर विशेष ध्यान रखना’ चाहिए। जिससे गृहिणियों को अधिक लाभ प्राप्त हो सकें।
प्रज्ञायोग व्यायाम के लाभ
ऽ पाचन संस्थान को शक्ति प्रदान करता है। ०शरीर के मांसपेशियों को उन्नत एवं मजबूत बनाता है।
ऽ फेफड़ों को पूरी तरह फैलाता है, एवं ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता को बढ़ाता है ।
ऽ स्नायु संस्थान को मजबूत कर स्मरण शक्ति को बढ़ाता है।
ऽ तनाव व चिंता जैसे मानसिक समस्याओं को दूर करता है।
ऽ वायु दोष, कब्ज, पेट का भारीपन, जैसे समस्याओं को दूर करता है।
ऽ हृदय की दुर्बलता को दूर कर रक्तदोष एवं कोष्ठबद्धता जैसी समस्याओं को दूर करता ळें
ऽ महिलाओं में मासिक धर्म की अनियमितता को दूर करता है इत्यादि।
सावधानियाँ
प्रज्ञायोग व्यायाम प्रत्येक आयु के लोगों के लिए समान रूप से उपयुक्त है परन्तु इसकी कुछ सीमाएँ भी है, जो निम्न हैं-
ऽ आँतों में टी. बी. या हर्निया की स्थिति मे यह अभ्यास वर्जित हैं ।
ऽ उच्च रक्तचाप,हृदय धमनी से संबंधित रोग या हृदयघात में पीड़ित व्यक्तियों को इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
ऽ किसी प्रकार का षरीर में ऑपरेषन आदि हुआ हो उस समय भी इसका अभ्यास नही करना चाहिए।
जीवन संतुष्टि
वर्तमान युग में जीवन संतुष्टि सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। बिना संतुष्टि के कोई भी व्यक्ति न तो सुख पूर्ण, और न ही समृद्धिपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकता है। जीवन संतुष्टि वातावरणीय जीवन एवं मनोवैज्ञानिक परिस्थितियों से संबंधित एक बहुआयामी प्रत्यय है। तथा यह किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता, अच्छे जीवन एवं आनंद से संबंधित है।
विल्सन (1968) का विचार है कि यदि कोई व्यक्ति जीवन के सभी पहु पहलुओं से संतुष्ट है, तो वह पूरी तरह की खुश होगा । (लाल, रघुवर 2020 पृ. 73-74)
जिस जीवन में सामान्य इच्छाओं की पूर्ति में संतुष्टि सम्मिलित होती है वह जीवन आनंद मय होता है परन्तु जब यही सामान्य साधारण इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो पाती जैसे-यदि पारिवारिक माहौल की आर्थिक स्थिति कमजोर है, तो इस स्थिति में गृहिणियों को गृहस्थ जीवन में असंतोष प्राप्त होती है।
आनंद प्राप्ति की क्षमता जीवन संतुष्टि में सम्मिलित है। जितना अधिक हम अपने जीवन में आनंद प्राप्त करते है उतना ही अधिक हम अपने जीवन से संतुष्ट हो पाते हैं।
जीवन संतुष्टि के दो पक्ष है -
ऽ सकारात्मक पक्ष
ऽ नकारात्मक पक्ष
एक तरफ तो यह व्यक्ति के प्रगति के लिए एवं समायोजन के लिए आवश्यक हैं। और वहीं दूसरी तरफ यह प्रगति को रोक भी देता है ।
व्यक्ति के जीवन में जीवन संतुष्टि को प्रभावित करने वाले कारक निम्न हो सकते हैं.
ऽ व्यक्तिगत
ऽ स्वास्थ्य
ऽ वैवाहिक
ऽ आर्थिक
ऽ सामाजिक
ऽ नौकरी
इस प्रकार गृहिणियों के जीवन में जीवन संतुष्टि में उसके दृष्टिकोण पर भी निर्भर करती है। यदि गृहिणियाँ किसी चीज को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखता है तो उसका संतुष्टि स्तर ऊँचा होता है। और यदि वहीं किसी भी चीजों को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखता है तो उसका संतुष्टि स्तर निम्न हो जाता हैं।
समस्या का कथन
क्या प्रज्ञायोग व्यायाम का गृहिणियों के जीवन संतुष्टि स्तर पर प्रभाव पड़ता है ?
अध्ययन का उद्देश्य
ऽ प्रज्ञायोग व्यायाम का अध्ययन करना ।
ऽ प्रज्ञायोग व्यायाम का गृहिणियों के जीवन संतुष्टि स्तर का अध्ययन करना।
परिकल्पना
प्रज्ञायोग व्यायाम का गृहिणियों के जीवन संतुष्टि स्तर पर कोई सार्थक प्रभाव नहीं पड़ता ।
प्रतिचयन विधि
प्रस्तुत शोध में उद्देश्यानुसार प्रतिचयन विधि का प्रयोग किया गया है।
समावेषित मापदण्ड-
प्रस्तुत शोध में उन्हें ही शामिल किया जायेगा। जो-
ऽ गृहिणिया बालोद जिला के अंतर्गत आते हैं।
ऽ आयु सीमा 30-40 वर्ष के होगे
ऽ माता बन चुकी है ।
ऽ सीमित परिवार की है।
ऽ जनकी आर्थिक स्थिति मध्यम है।
अपवर्जन मापदण्ड
ऽ गर्भवती महिलाएं
ऽ किसी प्रकार का आपरेशन हुआ हो ।
ऽ अन्य किसी प्रकार की बीमारी ।
षोध अभिकल्प विधि
प्रस्तुत शोध में पूर्व-पश्चात् परीक्षण शोध अभिकल्प का प्रयोग किया गया है।
प्रयुक्त उपकरण
क्यू जी ’अलॉम एवं रामजी श्रीवास्तव द्वारा निर्मित जीवन संतुष्टि स्केल प्रश्नावली, कुल प्रश्न 60, सन् 2001ं।
शोध प्रक्रिया
प्रस्तुत शोध हेतु भारत, छत्तीसगढ़ बालोद जिला के गृहिणियों को उद्देश्यानुसार प्रतिचयन विधि के द्वारा ऊपर वर्णित समावेषित एवं अपवर्जन मापदण्ड के अनुसार 50 प्रयोज्य का चयन किया गया।
तत्पश्चात् चयनित प्रयोज्यों को यादृच्छिक प्रतिचयन विधि द्वारा दो समूहों प्रायोगिक एवं नियंत्रित समूहों में बांटा गया ।
तत्पष्चात् प्रायोगिक एवं नियंत्रित समूह के 50 प्रयोज्यों को जीवन संतुष्टि प्रष्नावली भरवायी गईं।
तत्पश्चात् प्रायोगिक समूह के 25 प्रयोज्यों को 2 माह तक प्रज्ञायोग व्यायाम का अभ्यास प्रतिदिन सुबह 45 मिनट करवाया गया। तथा नियंत्रित समूह को किसी प्रकार का कोई अभ्यास नहीं करवाया गया ।
तत्पश्चात् प्रायोगिक एवं नियंत्रित दोनों समूहों के प्रयोज्यों को पुनः जीवन संतुष्टि प्रष्नावली भरवायी गई। एवं प्राप्त आंकडों का विश्लेषण टी-टेस्ट सॉख्यिकीय विधि द्वारा किया गया ।
सांख्यिकीय विश्लेषण
प्रस्तुत शोध में सांख्यिकीय विश्लेषण हेतु टी-टेस्ट परीक्षण सांख्यिकीय विधि का प्रयोग किया गया है ।
परिणाम सारणी एवं ग्राफ
|
Test |
N |
Mean |
SD |
SED |
t |
df |
Level of signification |
|
Pre - test |
25 |
19.96 |
1.83 |
0.37 |
4.70 |
29 |
0.01 level |
|
Post test |
25 |
21.57 |
1.57 |
परिणामों की विवेचना
प्रस्तुत शोध अध्ययन में प्रज्ञायोग व्यायाम का गृहिणियों के जीवन संतुष्टि स्तर की जाँच हेतु परिकल्पनाओं का निर्माण कर उपर्युक्त व्यांख्यिकीय प्रविधि के अंतर्गत टी-टेस्ट का प्रयोग कर आंकड़ो का सांख्यिकीय विश्लेषण किया गया प्राप्त परिणाम से ज्ञात होता है कि गृहिणियों द्वारा अभ्यास से पूर्व मध्यमान 19.96 तथा अभ्यास के पश्चात् का मध्यमान 21.7 प्राप्त हुआ । मध्यमान में 1.74 के अंतर आने से हमें ज्ञात होता है कि गृहिणियों द्वारा प्रज्ञायोग व्यायाम का अभ्यास करने से उनकी जीवन संतुष्टि स्तर में बढ़ोतरी होती है।
जीवन संतुष्टि के संदर्भ में भारतीय शास्त्र में कहा गया है, किं-
“संतीष परम् सुखम्, संतोषी सर्वदा सुखी ।“
श्रीमद् भगवद्गीता में निष्काम कर्म की धारणा का प्रतिपादन किया है। जिससे व्यक्ति सदा ही संघर्ष करते हुए प्रसन्नता को प्राप्त करता है ।
कहा गया है- “मन सुख-दुख का कारण है इसलिए देखा जाता है कि एक ही विषय को पाकर मन की अवस्था के भेद से लोग सुख-दुख का अनुभव करते हैं। (रानी देवी, 2007 पृ. 153)
वर्तमान में जीवन संतुष्टि के लिए प्रसन्नता और आत्मनिष्ठ, सुखानुभूति शब्द प्रयुक्त होता है। प्रसन्नता या सुख शब्द के प्रयोग के अपेक्षा जीवन संतुष्टि शब्द के प्रयोग का एक लाभ यह होता है, कि यह सुख या प्रसन्नता का चरित्र में एक विशिष्ट प्रभाव की अवधारण हैं। प्रसन्नता शब्द का प्रयोग व्यक्ति तथा कर्ता के अच्छे होने को व्यक्त करता है। जबकि जीवन संतुष्टि कार्यों के अच्छे होने का स्तर है और वर्तमान अनुभव या विशिष्ट मनोदैहिक लक्षणों को सूचित करने वाले आत्म-निष्ठ, सहानुभूति शब्द की अपेक्षा जीवन संतुष्टि शब्द संपूर्ण जीव के मूल्यांकन को दर्शाने में अति उपर्युक्त हैं। (रस्तोगिरिनु 2004 पृ. 112)
आधुनिक युग में व्यक्तियों के जीवन संतुष्टि स्तर पर कमी के कई कारण है-
जैसे- अत्यधिक नकारात्मक सोच, संतोष का अभाव, हीन भावना का उदय, आवश्यकताओं का बढ़ जाना तथा परिस्थितियों से सामंजस्य न बिठाना इत्यादि ।
प्रज्ञायोग व्यायाम के अभ्यास से व्यक्तियों के अंदर निम्नलिखित गुण व विशेषताएँ पायी जाती है, जिससे उनके जीवन संतुष्टि स्तर अधिक होता है । जैसे- एकाग्रता, दृढ़ता स्थिरता, आत्मविष्वास व स्वयं के पास जितने साधन हो उसी में संतुष्टि कर लेना तथा परिस्थिति के अनुसार अपने आपको ढाल लेना इत्यादि ।
पं. श्री राम शर्मा जी के अनुसार - जीवन में प्रसन्न/संतुष्ट रहने के दो उपाय है -
1. आवश्यकताएँ कम करें।
2. परिस्थितियों के साथ ताल-मेल बिठाएँ ।
इस प्रकार उपरोक्त गुणों से स्पष्ट है कि प्रज्ञायोग व्यायाम के अभ्यास से गृहिणियों के जीवन संतुष्टि स्तर में बढ़ोत्तरी होती है।
निष्कर्ष
निष्कर्षतः प्रस्तुत शोध में प्रज्ञायोग व्यायाम का अभ्यास करने वाले गृहिणियों की जीवन संतुष्टि स्तर को मापने के लिए Q.G. Alam तथा Ram Ji Shrivastava के द्वारा तैयार की गयी मापनी जीवन संतुष्टि खेल का प्रयोग किया गया।
इस मापनी के अंतर्गत जीवन संतुष्टि से संबंधित 60 प्रश्न दिए गए थे। जो कि इस शोध को सफल बनाने में अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुयी।
प्रज्ञायोग व्यायाम के अभ्यास से शरीर में स्थिरता के साथ-साथ मन में शांति, संतोष उत्साह उमंग आदि अच्छे गुणों का विकास होता है।
अतः हम कह सकते हैं कि इस भौतिकता भरे युग मे इस भाग-दौड़ जिंदगी में भी अपनी दिन -चर्या में प्रज्ञायोग व्यायाम जैसे अभ्यास को शामिल कर लिया जाए तो शारीरिक स्थिति के साथ मानसिक स्थिति में भी काफी सुधार हो सकता है। जिससे जीवन में प्रसन्नता व संतुष्टि आती है।
संदर्भ सूची
1. ब्रहावर्चस, (1998) “प्रज्ञा अभियान का योग व्यायाम युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, गायत्री तपोभूमि, मथुरा -3। पृ.-13-19।
2. कुमार, कामख्या (2010)“ योग चिकित्सा संदर्शिका “षांतिकुज हरिद्वार, श्री वेद माता गायत्री ट्रस्ट गायत्री नगर श्रीरामपुरम् उत्तराखण्ड - 249411। पृ. 30।
3. रावत अनुजा (2016) योग और योगी सत्यम पब्लिषिंग हाऊस छ-3/25 मोहन गार्डन, उत्तम नगर नई दिल्ली 110059 पृ.175-180 ।
4. सुलेमान, पो. मुहम्मद एवं कुमार डॉ. दिनेश (2005), मनोविज्ञान, समाज शास्त्र (तथा शिक्षा में शोध विधियां, जनरल बुक एजेन्सी शैक्षणिक प्रकाशक अशोक राजपथ चौहट्टा, पटना - 800-004 पृ. 63,76,160।
5. लाल रघुवर (2020), अध्यापक और उनके जीवन संतुष्टि के बीच संबंधों का अध्ययन व उसका महत्त्व, इनटरनेशनल जनरल ऑफ एडवान्स एजुकेशन एण्ड रिसर्च प्ैैछरू 2455-5746. वॉल्यूम 5 (5) पृ. 73-74।
6. रानी सी. शोभा और देवी एम. शारदा (2007) “विवाहित कामकाजी और गैर कामकाजी महिलाओं की जीवन संतुष्टि मानसिक-सांस्कृतिक आयामों की प्राची जर्नल, वॉल्यूम 23 (2) पृ.153।
7. अहमद अनीस, अहमद फुजैल “वृद्ध विष्वविद्यालय के कर्मचारियों के जीवन की संतुष्टि सामुदायिक मार्गदर्शन और अनुसंधान के जर्नल, नीलकमल प्रकाशन हैदराबाद, वॉल्यूम 26 (3) पृ० 311-312।
8. रस्तोगिरिनु, दवे वंदना (2004), ’सेवानिवृत्त कर्मचारियों में जीवन संतुष्टि“, इंडियन जर्नल ऑफ साइकोमेट्री एण्ड एजुकेशन। इंडियन साइकोमेट्रिक एण्ड एजुकेशन रिसर्च एसोसिएशन पटना। खंड 35 (2) पृ० 112-114 ।
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Received on 28.06.2022 Modified on 19.08.2022 Accepted on 01.10.2022 © A&V Publication all right reserved Int. J. Ad. Social Sciences. 2022; 10(3):111-117.
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